पाणिनि काल में नारी आराधनीया एवं सम्मानभाजिका थी--- डॉ देव नारायण पाठक !
जन नायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के समाजशास्त्र एवं अर्थशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित "वर्तमान शिक्षा प्रणाली में भारतीय ज्ञान परम्परा की प्रासंगिकता"विषयक फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के प्रथम दिवस नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय प्रयागराज के ज्योतिष कर्मकाण्ड वास्तुशास्त्र एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ देव नारायण पाठक ने महर्षि पाणिनि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तृत प्रकाश डाला तथा बताया कि
व्याकरण प्रणयन में पाणिनि का योगदान अभूतपूर्व है। पाणिनि प्रदत्त अष्टाध्यायी समकालीन वैज्ञानिक मापदण्डों के अनुरूप ही मानवमस्तिष्क का अभूतपूर्व प्रमाण है। पाणिनि की दृष्टि केवल शास्त्रपरक ही नहीं है अपितु वे मानवजीवन के प्रत्येक स्तर को स्पर्श करते हैं। स्त्रीविमर्श समकालीन समाज में सर्वाधिक चर्चित विषय है और प्रायः भारतीय सामाजिकव्यवस्था पर आक्षेप प्राप्त होता है कि भारतीय समाज में प्राचीनकाल से ही नारी को दोयमदर्जे का माना गया है और इस विषय पर भिन्न-भिन्न मत मतान्तर प्राप्त होते हैं।यद्यपि अष्टाध्यायी घोरशास्त्रीय परम्परा का ग्रन्थ है तथापि पाणिनीय सूत्रों में स्त्रियों के सम्मान को दर्शाने वाले अनेक संकेत प्राप्त होते हैं जिससे ज्ञात होता है कि पाणिनि काल में नारी आराधनीया और सम्मानभाजिका थी। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीत गुप्ता ने अपना आशीर्वचन दिया तथा मुख्य अतिथि विभागाध्यक्षचर दर्शन शास्त्र विभाग,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी प्रोफेसर एस.सी.पाण्डेय ने भारतीय ज्ञान परम्परा के अनेकानेक विन्दुओ पर बड़ा मार्मिक प्रकाश डाला। कार्यक्रम का प्रारम्भ मां वाग्देवी की वन्दना से हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ स्मिता त्रिपाठी ने किया तथा संयोजन डॉ प्रियंका सिंह ने किया। इस अवसर पर डॉ अभिषेक त्रिपाठी, डॉ विवेक कुमार यादव, डॉ शशिभूषण, डॉ प्रज्ञा बौद्ध तथा डॉ राम शरण यादव सहित सैकड़ों छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।
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