इलाहाबाद हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी लिव इन रिलेशनशिप केवल 'टाइम पास' है स्थिर नहीं होते ऐसे रिश्ते !
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- Updated: 25 October, 2023 14:55
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प्रयागराज. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अंतर-धार्मिक जोड़ों के 'लिव-इन' रिश्तों को 'टाइम पास' करार दिया है और कहा है कि ऐसे रिश्ते स्थायी नहीं होते हैं. जब तक जोड़ा इस रिश्ते को शादी के ज़रिए नाम देने को तैयार नहीं होता, तब तक उसे सुरक्षा का कोई आदेश नहीं दिया जा सकता.
कोर्ट ने कहा, जिंदगी फूलों की सेज नहीं है, यह बहुत कठिन और मुश्किल है. कोर्ट ने एफआईआर और सुरक्षा रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है और हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने कुमारी राधिका व सोहेल खान की याचिका पर दिया है.याचिकाकर्ता ने कहा, दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं। इसलिए राधिका की मौसी द्वारा मथुरा के रिफाइनरी थाने में अपहरण के आरोप में दर्ज कराई गई एफआईआर रद्द की जाए और गिरफ्तारी रोककर पुलिस सुरक्षा दी जाए.
उठाए सवाल कोर्ट ने
कोर्ट ने कहा, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी है, लेकिन दो महीने की अवधि में और वह भी 20-22 साल की उम्र में, जोड़े शायद ही इस तरह के अस्थायी रिश्ते पर गंभीरता से विचार कर पाएंगे. . .खंडपीठ ने कहा, 'अदालत का मानना है कि इस तरह के रिश्ते में स्थिरता और ईमानदारी से ज्यादा लगाव होता है. जब तक जोड़ा शादी करने और अपने रिश्ते को एक नाम देने का फैसला नहीं करता या वे एक-दूसरे के प्रति ईमानदार नहीं होते, तब तक अदालत इस प्रकार के रिश्ते में कोई भी राय व्यक्त करने से कतराती रहेगी।'
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसकी उम्र 20 साल से अधिक है और वयस्क होने के नाते उसे अपना भविष्य तय करने का पूरा अधिकार है. उसने याचिकाकर्ता नंबर दो को अपना प्रेमी चुना है, जिसके साथ वह लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है।
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