केवल एक पक्ष को सुनकर भरण-पोषण का आदेश नहीं दिया जा सकता:इलाहबाद हाईकोर्ट !
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- Updated: 22 December, 2023 09:32
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प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि फैमिली कोर्ट दूसरे पक्ष को सुने बिना सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का एकतरफा आदेश नहीं दे सकती। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी बकाया गुजारा भत्ता की वसूली का वारंट रद्द कर दिया है. साथ ही मुख्य न्यायाधीश ने फैमिली कोर्ट, आगरा को मामले की दोबारा सुनवाई करने और भरण-पोषण भत्ते के आवेदन को छह महीने के भीतर नए सिरे से निस्तारित करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने ललित सिंह की समीक्षा याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। अदालत ने याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे के भरण-पोषण के लिए प्रति माह 5,000 रुपये और बकाया राशि 1 लाख रुपये का भुगतान करने का भी आदेश दिया।
याचिकाकर्ता की पत्नी ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट, आगरा के समक्ष एक आवेदन दायर किया। कोर्ट ने पत्नी को 6 हजार रुपये प्रति माह और नाबालिग बेटे को 3 हजार रुपये प्रति माह देने का एक पक्षीय आदेश पारित किया. साथ ही बकाया राशि 2.52 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया.
जब याचिकाकर्ता ने राशि का भुगतान नहीं किया तो पत्नी ने आदेश का पालन करने के लिए आवेदन दायर किया, जिस पर फैमिली कोर्ट ने रिकवरी वारंट जारी किया। याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की. याचिकाकर्ता अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि फैमिली कोर्ट ने एकतरफा आदेश पारित किया है. वारंट जारी होने के बाद उन्हें इसकी जानकारी हुई.
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