किसी नाबालिग को भी उसकी इच्छा के विरुद्ध संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता- इलाहाबाद हाई कोर्ट
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- Updated: 9 December, 2023 12:58
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क्या कहा इलाहबाद हाइकोर्ट ने ...
प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी नाबालिग को उसकी इच्छा के विरुद्ध सरकारी बालिका संरक्षण गृह या किसी अन्य संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता है। राजकीय बालिका संरक्षण गृह में रखी गई पीड़िता को कोर्ट ने पति के साथ जाने की इजाजत दे दी है. साथ ही पति के खिलाफ दर्ज अपहरण और दुष्कर्म का मामला भी रद्द कर दिया गया है.
न्यायमूर्ति नीरज तिवारी
यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने जालौन निवासी मनोज कुमार उर्फ मोनू कटारिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाकर्ता ने उरई में उसके खिलाफ अपहरण, दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले में दाखिल आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की थी. याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि पीड़िता की मां ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया है. हकीकत तो यह है कि उसका पीड़िता से प्रेम संबंध था और दोनों ने अपनी मर्जी से शादी कर ली थी.
मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 16 साल
चूंकि मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की उम्र 16 साल बताई गई थी, इसलिए पीड़िता को राजकीय बालिका संरक्षण गृह भेज दिया गया और मोनू को जेल जाना पड़ा. बाद में उन्हें हाई कोर्ट से जमानत मिल गई थी। पीड़िता की मां ने उसकी कस्टडी लेने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उसे संरक्षण गृह भेजना पड़ा, जहां उसने एक बच्चे को भी जन्म दिया. हाई कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट के सामने दिए बयान में पीड़िता ने अपनी उम्र 19 साल बताई है.
भले ही पीड़िता नाबालिग हो, उसे उसकी मर्जी के खिलाफ संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता.
कोर्ट ने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस स्थिति में भले ही पीड़िता नाबालिग हो, उसे उसकी मर्जी के खिलाफ संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता. यह स्थापित कानून है कि आयु निर्धारण के मामले में मेडिकल रिपोर्ट से दो वर्ष अधिक या कम आयु पर विचार किया जा सकता है। पीड़िता की उम्र 18 साल से अधिक है और उसने एक बच्चे को भी जन्म दिया है. मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं.
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