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Saturday 12 Apr 2025 7:34 AM

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श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह भूमि विवाद मामले में HC में सुनवाई, मूल गर्भगृह मस्जिद के नीचे है. मंदिर पक्ष का दावा!



सुनवाई हुई  मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में , ईदगाह पक्ष का प्रश्न सिविल वाद की पोषणीयता पर

   प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि कटरा केशव देव और मथुरा के शाही ईदगाह विवाद में एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति की मांग को लेकर दाखिल अर्जी पर सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। साथ ही सुनवाई में उपस्थित नहीं होने वाले पक्षों को नोटिस जारी करने का भी आदेश दिया गया है. यह आदेश न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की पीठ ने भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव समेत 16 अन्य सिविल वादों में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है.

कोर्ट कमिश्नर पद पर नियुक्ति के लिए अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन एवं प्रभाष पांडे द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया गया है. दलील दी गई कि पीठ के समक्ष मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद से जुड़े सभी 16 मामलों की सुनवाई होनी है. इससे पहले अगर कोर्ट एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर घटनास्थल का भौतिक निरीक्षण कराए तो मामले की सुनवाई में अहम साक्ष्य सामने आएंगे. मस्जिद के नीचे भगवान कृष्ण से संबंधित कई प्रतीक चिन्ह हैं। इसके अलावा यहां से हिंदू वास्तुकला से जुड़े कई सबूत भी मिले हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वेश्वर मंदिर विवाद में भी यही किया गया. वहां भी एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त कर भौतिक जांच कराई गई है। मथुरा शाही ईदगाह प्रबंधन समिति की ओर से पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील महमूद प्राचा ने दलील दी कि पिछले 46 सालों में कुछ नहीं किया गया. साथ ही कमेटी ने केस ट्रांसफर करने के हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इसकी सुनवाई 9 जनवरी 2024 को होनी है.


 सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता ने बताया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत सिविल वाद की पोषणीयता पर आपत्ति जताई गई है. पूजा स्थल अधिनियम के तहत 947 की स्थिति को नहीं बदला जा सकता है। ऐसे मामलों में सिविल सूट पर रोक लगा दी गई है. इस पर वक्फ एक्ट भी लागू होता है. जब मामला ही चलने योग्य नहीं है तो एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने का औचित्य ही नहीं उठता। सिविल वादों की पोषणीयता तय होने के बाद ही आगे के आदेश पारित किये जा सकेंगे। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह समेत कई अन्य पक्षकारों ने भी अपनी दलीलें पेश कीं. सुनवाई सुबह 10 बजे से दोपहर 1 बजे तक कुल तीन घंटे तक चली.

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