प्रयागराज में सरस्वती प्रकट हुई थी --डाॅ.देव नारायण पाठक
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- उत्तर प्रदेश
- Updated: 15 January, 2023 12:22
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नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय प्रयागराज के ज्योतिष कर्मकाण्ड वास्तुशास्त्र एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ देव नारायण पाठक ने
तीर्थराज प्रयाग में सरस्वती का प्राकट्य कब और कैसे हुआ?इस प्रश्न का उत्तर देते हुए पद्मपुराण में वर्णित कथा का उल्लेख करते हुए बताया कि सृष्टि निर्माण के समय ब्रह्मा के मुख से सरस्वती का जैसे ही प्राकट्य हुआ ,उसके प्रति ब्रह्मा की कुदृष्टि सभी देवताओं को अच्छी नहीं लगी।सभी देवताओं ने उनके इस कृत्य की निन्दा की, जिसके परिणामस्वरूप सरस्वती वहाँ से अन्तर्निहित हो गयीं। कुछ दिन बाद प्रभास- तीर्थ की प्रशंसा सुनकर देवलोक की अप्सराएँ वहाँ पधारी। वहीं संयोगात् महर्षि दधीचि की दृष्टि उन पर पड़ी।उनके रूप सौन्दर्य से आकृष्ट होने के कारण कामार्त दधीचि का वीर्य स्खलित हो गया और कुश पर जा गिरा ,जिसे वहीं चरती हुई एक घोड़ी ने निगल लिया। समय आने पर घोड़ी ने एक बाडव नाम के बालक को जन्म हुआ। जन्म लेते ही उसकी तीव्र बुभुक्षा को देखकर सभी घबड़ा गये। वह जो भी पाता सब भक्षण करने लगा।उसकी इस बुभुक्षा से समूचा ब्रह्माण्ड भयभीत होने लगा।सभी देवगण चिन्तित होकर ब्रह्मा के पास गये।ब्रह्मा को भी किंकर्तव्यविमूढ़ देख सरस्वती पुन: प्रकट हुई और ब्रह्मा से बोली कि पिता जी मैं क्या सहायता करूँ। ब्रह्मा ने उस बाडव की बुभुक्षा को शान्त करने का कोई उपाय खोजने के लिये कहा। सरस्वती ने अपनी कच्छपी वीणा की मधुर तान पर वहाँ के चर-अचर सभी को आकृष्ट कर लिया। वह बाडव भी सरस्वती के उस रूप सौन्दर्य और गुण से प्रभावित होकर सरस्वती के पास गया और उनके साथ रहने के लिये प्रार्थना करने लगा।सरस्वती ने उसके भक्षक स्वभाव के कारण उसकी प्रार्थना को अस्वीकार किया। उस बाडव ने पुन: निवेदन किया कि आप ही बताओ मैं क्या करूँ? जिससे मेरी क्षुधा शान्त हो सके। इस पर सरस्वती ने कहा कि तुम मेरे साथ चलो और उसे लेकर समुद्र के तट पर गईं और बोली कि तुम यहीं अपनी भूँख मिटा लो। यह देख वह बाडव एक दिन में दस योजनों तक सागर का जल पान करने लगा।यह देख सरस्वती वहाँ से प्रयाग की ओर चली आयीं। इस सम्बन्ध में कहा गया है कि -
एवं ब्रह्मादि संबाधं वारयित्वा स्वतेजसा ।
परावृता च संहृष्टा प्रयागे समुपागता।।
सारे देवगण प्रसन्नता से सरस्वती की पूजा अर्चन करने लगे। विष्णु भगवान ने सरस्वती के इस कार्य से प्रसन्न होकर उन्हें प्रयाग में गंगा यमुना के संगम में साथ रहने के लिये निवेदन किया।उन्होंने कहा कि तुम यहीं हम सबके साथ रहो। प्रयाग में ब्रह्मा ,विष्णु और महेश आदि अनेक देवगण निवास करते हैं। विष्णु के अनुरोध पर वेणी के रूप में वह सरस्वती भी गंगा ,यमुना के साथ त्रिवेणी बनकर निवास करने लगी।तभी से सरस्वती का प्रादुर्भाव माना जाने लगा। सभी लोकों के देवगण और उनकी पत्नियाँ गंगा ,यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम में दर्शन करने आये और विधिपूर्वक सबने यहीं स्नान भी किया।
गंगायमुनयो: प्रीतिं क्षेत्रचाद्भूतयाससा।
तिसृणां संगमं श्रुत्वा प्रयागे तीर्थनायके।
लोकत्रयागता: सर्वे सपत्नीका: समागता:।
समागत्य त्रिवेण्यान्ते स्नानं कृत्वा विधानत:।।
इस प्रकार प्रयाग में सरस्वती का प्राकट्य माना गया। इन्हीं सरस्वती की धारा से अक्षयवट के समीप सरस्वती कूप के भीतर गिरे हुए त्रित मुनि को ऊपर निकाला गया।उसी सरस्वती कूप में त्रित मुनि ने सोमयाग सम्पादित किया, जिससे प्रभावित होकर समस्त देवगण अपना हिस्सा लेने के लिये यहाँ आये।सरस्वती कूप के भीतर उनकी यजनक्रिया देखकर सबने उन्हें सरस्वती का आवाहन किया और उसकी धारा से त्रितमुनि को बाहर निकाला गया।सरस्वती कूप का भी इसीलिये माहात्म्य माना गया है।
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